परिचय
कच्चातिवु, भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलसंधि में स्थित एक छोटा, 285 एकड़ का निर्जन द्वीप है। यह भारत के रामेश्वरम से लगभग 33 किमी उत्तर-पूर्व और श्रीलंका के जाफना से लगभग 62 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस द्वीप पर कोई स्थायी मानव बस्ती नहीं है, क्योंकि यहाँ पेयजल का कोई स्रोत उपलब्ध नहीं है। द्वीप पर एकमात्र उल्लेखनीय संरचना सेंट एंथोनी चर्च है, जो 20वीं सदी की शुरुआत में बना एक कैथोलिक चर्च है। इस चर्च में भारत और श्रीलंका के श्रद्धालु प्रतिवर्ष एक धार्मिक उत्सव में भाग लेते हैं। कच्चातिवु का स्वामित्व और उपयोग लंबे समय से भारत-श्रीलंका के बीच एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जो ऐतिहासिक, भू-राजनीतिक और आर्थिक कारकों से प्रभावित है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- उत्पत्ति और प्रारंभिक शासन: कच्चातिवु का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। मध्ययुग में यह द्वीप श्रीलंका के जाफना साम्राज्य के अधीन था। 17वीं शताब्दी में यह मदुरै के नायक राजवंश के तहत रामनाद जमींदारी के नियंत्रण में आया।
- औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान, कच्चातिवु मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। हालाँकि, श्रीलंका ने पुर्तगाली और डच औपनिवेशिक काल (1505-1658) के दौरान द्वीप पर अपने ऐतिहासिक दावे का हवाला देते हुए संप्रभुता का दावा किया।
विवाद का स्वरूप
कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच स्वामित्व का विवाद औपनिवेशिक काल से शुरू होकर स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा। यह विवाद निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित है:
- 1974 का समझौता : भारत और श्रीलंका के बीच 1974 में हुए समुद्री सीमा समझौते के तहत कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंप दिया गया। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा को स्पष्ट करना था।
- 1976 का समझौता : इस समझौते ने दोनों देशों को एक-दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में मछली पकड़ने से रोकने का प्रयास किया। हालाँकि, कच्चातिवु की सीमा पर स्थिति के कारण मछुआरों के अधिकारों को लेकर अस्पष्टता बनी रही।
- 2009 के बाद तनाव : श्रीलंका के गृहयुद्ध (1983-2009) के समाप्त होने के बाद, भारतीय मछुआरों के श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश को लेकर तनाव बढ़ा। श्रीलंका द्वारा भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी, हिरासत में कथित यातना और अन्य विवादों ने कच्चातिवु की स्थिति को फिर से चर्चा में ला दिया।

विवादास्पद मुद्दे:
- 1974 के समझौते में भारतीय मछुआरों को कच्चातिवु में मछली पकड़ने, जाल सुखाने और चर्च में बिना वीजा के जाने की अनुमति दी गई थी।
- श्रीलंका ने इन अधिकारों को सीमित करने की कोशिश की, जिससे दोनों पक्षों के बीच समझौते की व्याख्या को लेकर मतभेद उत्पन्न हुए।
- मछुआरों के अधिकारों और समुद्री सीमा के उल्लंघन को लेकर तनाव बना रहा, जिसने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया।
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हितधारकों का रुख
तमिलनाडु सरकार:
- तमिलनाडु, विशेष रूप से इसके मछुआरा समुदाय, कच्चातिवु को भारत के लिए ऐतिहासिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मानता है।
- 1973 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने केंद्र सरकार से द्वीप पर भारत का दावा बनाए रखने का आग्रह किया था।
- 1991 में, तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने द्वीप को स्थायी पट्टे पर लेने की माँग को संशोधित करते हुए इसे पुनः प्राप्त करने की वकालत की। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा।
- तमिलनाडु में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है, और विभिन्न दलों ने इसे बार-बार उठाया है।
केंद्र सरकार:
- केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अधिक सतर्क रुख अपनाया है।
- 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र ने कहा कि 1974 और 1976 के समझौतों ने कच्चातिवु विवाद को सुलझा दिया था, और इसे पुनः प्राप्त करने का कोई प्रश्न नहीं उठता, क्योंकि कोई भारतीय क्षेत्र श्रीलंका को नहीं सौंपा गया था।
- 2022 में, केंद्र ने राज्यसभा में दोहराया कि कच्चातिवु भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंकाई हिस्से में स्थित है।
- केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को कूटनीतिक और ऐतिहासिक संदर्भ में देखने का प्रयास किया है, ताकि श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय संबंध प्रभावित न हों।
श्रीलंका का रुख:
- श्रीलंका ने कच्चातिवु पर अपनी संप्रभुता को औपनिवेशिक काल के दावों और 1974 के समझौते के आधार पर उचित ठहराया है।
- श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों के अपने जलक्षेत्र में प्रवेश को अवैध माना है और इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाए हैं, जिसमें गिरफ्तारियाँ और नौकाओं को जब्त करना शामिल है।
वर्तमान स्थिति
- यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
- तमिलनाडु में मछुआरों के बीच असंतोष और राजनीतिक दबाव के कारण यह मुद्दा समय-समय पर चर्चा में आता रहता है।
- भारत-श्रीलंका के बीच कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए इस मुद्दे को सावधानीपूर्वक संभाला जा रहा है, लेकिन मछुआरों के अधिकारों और समुद्री सीमा के उल्लंघन से संबंधित तनाव बरकरार है।
कच्चातिवु द्वीप विवाद भारत-श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक दावों, समुद्री सीमाओं और मछुआरों के अधिकारों से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। यह विवाद न केवल भू-राजनीतिक और कूटनीतिक पहलुओं को दर्शाता है, बल्कि स्थानीय मछुआरा समुदायों की आजीविका और सांस्कृतिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। इस मुद्दे का समाधान दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग, कूटनीतिक वार्ता और मछुआरों के हितों को ध्यान में रखकर ही संभव है।