Gen-Z Nepal Protests: नेपाल में सोशल मीडिया बैन | युवाओं का गुस्सा और आंदोलन

Gen-Z Nepal Protests 2025

दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक आंदोलनों और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं से प्रभावित रहा है। हाल ही में नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ भड़की युवाओं की व्यापक असंतोष की लहर ने न केवल देश की राजनीति को संकट में डाल दिया, बल्कि यह भी संकेत दिया कि सूचना के युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पारदर्शी शासन की मांग अनिवार्य हो चुकी है। प्रधानमंत्री के इस्तीफे तक पहुंचा यह आंदोलन नेपाल के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जा रहा है।

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  • नेपाल सरकार ने पिछले सप्ताह यह आदेश दिया कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को देश में पंजीकरण कराना होगा। अनुपालन न होने पर इन मंचों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • इस निर्णय को युवाओं ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और भ्रष्टाचार विरोधी आवाज़ को दबाने का प्रयास माना।
  • विरोध प्रदर्शन तेजी से हिंसक हो गए, जिसमें कई लोगों की मौत हुई, संसद भवन और प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति आवासों पर हमले हुए।
  • स्थिति की गंभीरता देखते हुए सरकार ने प्रतिबंध हटाया, लेकिन प्रधानमंत्री समेत कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा।
  • यह घटना नेपाल की लोकतांत्रिक संस्थाओं की नाजुकता को दर्शाती है।
  • सरकार का निर्णय लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत था, क्योंकि जनता से परामर्श किए बिना स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।
  • इससे शासन और नागरिकों के बीच विश्वास की खाई (trust deficit) और गहरी हुई।
  • आंदोलन का नेतृत्व “जनरेशन-जेड ” कर रही थी, जो अधिक जागरूक, तकनीक-प्रवीण और असमानताओं से असंतुष्ट वर्ग है।
  • युवाओं की ऊर्जा अगर रचनात्मक दिशा में न जाए तो यह हिंसा और अराजकता का रूप ले सकती है।
  • यह भी स्पष्ट हुआ कि सोशल मीडिया अब केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और जनसंपर्क का उपकरण बन चुका है।
  • हिंसा और तोड़फोड़ से सरकारी संपत्ति और निजी व्यवसायों को भारी नुकसान पहुंचा।
  • राजनीतिक अस्थिरता से निवेश माहौल और पर्यटन (नेपाल की अर्थव्यवस्था का अहम स्तंभ) पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
  • बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मूल आर्थिक कारण भी युवाओं के आक्रोश के पीछे छिपे हैं।

नेपाल की वर्तमान स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि शासन तंत्र ने अपने बुनियादी दायित्वों की उपेक्षा की है। सरकार ने निर्णय लेते समय सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता जैसे मूल्यों को दरकिनार किया और नीति निर्माण की प्रक्रिया में लोक-भागीदारी का अभाव दिखाई दिया। दूसरी ओर, युवाओं ने अपनी असहमति को शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से व्यक्त करने के बजाय हिंसा और आगजनी का सहारा लेकर स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया। लोकतंत्र में सरकार का पहला कर्तव्य नागरिक अधिकारों की रक्षा करना और संवाद की संस्कृति विकसित करना होता है, जबकि नागरिकों की जिम्मेदारी यह है कि वे अपनी असहमति को संविधानसम्मत और नैतिक मार्ग पर अभिव्यक्त करें।

यह संकट केवल नेपाल तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है। श्रीलंका और बांग्लादेश में भी इसी तरह का जनाक्रोश सरकारों के पतन का कारण बना था, और नेपाल की स्थिति उसी श्रृंखला की अगली कड़ी प्रतीत होती है। इसके साथ ही, यह भारत के लिए भी गहरी चिंता का विषय है क्योंकि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर सीमा-सुरक्षा, व्यापार और द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ सकता है।

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आगे की राह

नेपाल की मौजूदा स्थिति यह संकेत देती है कि केवल कठोर कदमों से हालात काबू में नहीं आएंगे। सबसे पहले, सरकार और युवाओं के बीच खुले संवाद और सहभागिता की संस्कृति विकसित करनी होगी। नीतियों को थोपने के बजाय युवाओं को नीति-निर्माण की प्रक्रिया में सहभागी बनाया जाए ताकि उन्हें यह महसूस हो कि वे केवल विरोध करने वाले नहीं, बल्कि व्यवस्था को सुधारने वाले साझेदार भी हैं।

लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित होती है। इसलिए, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नागरिक अपनी राय बेझिझक रख सकें। सोशल मीडिया जैसे मंचों पर नियंत्रण आवश्यक हो सकता है, लेकिन यह नियंत्रण केवल पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्यायसंगत प्रक्रिया के माध्यम से ही स्वीकार्य होगा।

भ्रष्टाचार, जो जनता के असंतोष की जड़ है, उस पर कड़े प्रहार की आवश्यकता है। इसके लिए स्वतंत्र और मजबूत भ्रष्टाचार-निरोधक संस्थाओं की स्थापना करनी होगी। साथ ही, जनप्रतिनिधियों और उनके परिवारों के आचरण में भी जवाबदेही और सादगी झलकनी चाहिए, ताकि जनता को यह विश्वास हो सके कि नेतृत्व केवल उपदेश नहीं देता, बल्कि उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।